Surya Samachar
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लोकतंत्र में मत और मतदाता

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लोकतंत्र का महापर्व जारी है. आज देश में चौथे चरण का मतदान हो रहा है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में मत और मतदाता का विशेष महत्व होता है. ऐसी स्थिति में हर मतदाता का जागरूक व समझदार होना आवश्यक है. अन्यथा उसके वोट का दुरुपयोग हो सकता है. देश के नागरिक इस आम चुनाव में 543 सांसद चुनेंगे जो देश का भविष्य तय करेंगे. व जन समस्याओं को सुलझाने में जनता का प्रतिनिधित्व करेंगे.

चुनावी महासमर में हर राजनैतिक पार्टी का अपना एजेंडा होता है. अपनी कार्यनीति होती है. राजनीतिक पार्टियों के नेता व प्रतिनिधि चुनावी सभाओं में बड़े-बड़े वादे करते है. आम जनता को हर संभव यह यकीं दिलाने की कोशिश की जाती है कि वे उनके सच्चे हितेषी है. और वे ही उनकी समस्याओं का स्थायी हल दे सकते है. ऐसी स्थिति में मतदाता का दूरदर्शी व समझदार होना आवश्यक है. उसे अपनी स्थिति का सही आकलन करना चाहिए और यह जानना चाहिए कि वे कौन सी स्थितियां है जिन के कारण वह आज भी जीवन की मूलभुत जरूरतों के लिए संघर्षरत है. शिक्षा, स्वास्थय, रोजी, रोटी, सड़क, बिजली, पानी, जैसी जरूरतों के लिए वह आज भी कई गावों में सरकार के रहमों-करम पर है. और मशक्कत भरी जिंदगी जीने को विवश.

चुनावी महापर्व में हर मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करना चाहिए. चुनाव आयोग मतदान करने के लिए प्रोत्साहित करता है. फिर भी देश में औसत मतदान  60 प्रतिशत के आसपास ही होता है. कुछ राज्यों को छोड़ दें जहां मतदान का प्रतिशत 75 प्रतिशत के आसपास भी होता है. सरकार व निजी क्षेत्र की कंपनियां मतदान के दिन अवकाश की सुविधा देती है,पर कई कर्मचारी उसे सिर्फ छुट्टी का दिन मान लेते है. और चाय की चुस्कियों के साथ पकौड़े खाते रहते है. दिलचस्प बात यह है कि ऐसे लोग सरकार को बुरा भला कहने में सबसे आगे रहते है. इस तरह की बहस में वे बड़े जोरों-शोरों के साथ बकवास करते है. हैरानी इस बात है जब उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनने का अपनी पसंद की सरकार बनाने का अवसर मिलता है. तब वे गरमा गरम पकौड़े खाने में मस्त रहते है. और अपने अमूल्य वोट का इस्तेमाल तक नहीं करते है. 

यह सच है की वोट देने की कोई क़ानूनी बाध्यता हमारे देश में नहीं है. इसी कारण मतदान का प्रतिशत काम रहता है. जो 60 प्रतिशत मतदान होता भी है. वो आज भी भाषाई और जातिगत खानों में बंटा है. और इस बात को राजनेता बखूबी जानते है. और इसी का वे लाभ उठा कभी संप्रदाय, कभी मंदिर, मस्जिद, कभी जात पात के नाम पर सियासी शतरंज पर अपनी चाल चलते रहते है. और आम मतदाता शतरंज को बिसात पर पिटे मोहरे सा फिर 5 साल के लिए छला जाता है.

मनमोहन रामावत 

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