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अब यादों में रह जायेगा आर. के. स्टूडियो

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भारतीय सिनेमा में धूमकेतु सा चमकने वाला आर. के. स्टूडियो अब यादों में रह जायेगा. कपूर परिकर ने आर. के. स्टूडियो को बेचने का फैसला तो कुछ समय पहले ही कर लिया था. अंततः गोदरेज प्रॉपर्टीज ने इस स्टूडियो को खरीद लिया है. गोदरेज प्रॉपर्टीज अब यहां लग्जरी अपार्टमेंट व मार्केट कॉम्प्लेक्स बनाएगी.

सिने जगत के शोमैन राजकपूर ने  1948 में आर. के. स्टूडियो की स्थापना की थी. इसी स्टूडियो में राजकपूर ने आग, बरसात, आवारा, श्री 420, संगम, मेरा नाम जोकर और बॉबी जैसी हिट फिल्मो की शूटिंग की. बरसात में हम से मिले तुम सनम ( बरसात ) आवारा हूं, आसमान का तारा हूं, ( आवारा ) मेरा जूता है जापानी ये पतलून इंगलिस्तानी ( श्री 420 ) बोल राधा बोल संगम होगा की नहीं ( संगम ) ए भाई जरा देखकर चलो, दाएं भी नहीं बाएं भी नहीं ( मेरा नाम जोकर ) जैसे गाने आज भी श्रोताओं को रोमांचित कर देते है.

सिनेमा का सामीप्य राजकपूर को विरासत में मिला था पिता पृथ्वीराजकपूर जाने माने कलाकार थे इसका पूरा लाभ राजकपूर को मिला और उस वक्त की नाम चीनी हस्तियों व कलाकारों तक राजकपूर की आसान पहुंच थी. राजकपूर प्रतिभावान थे और उनके सोचने समझने के दायरे बहुत विस्तृत थे. यही कारण है की राजकपूर न केवल अच्छे अभिनेता थे बल्कि वे, राइटर डाइरेक्टर, प्रोडयूसर होने के साथ-साथ संगीत व शायरी की बहुत अच्छी समझ भी रखते थे. इसी कारण  उनकी फिल्मों के गीत व संगीत फिल्म रिलीज होने के पहले ही लोकप्रिय हो जाते थे. और आज 40-50 साल बाद भी न केवल कर्णप्रिय है बल्कि लोकप्रिय भी है.राजकपूर ने राम तेरी गंगा मैली, प्रेमरोग, हिना, जिस देश में गंगा बहती है, बूट पालिश, सत्यं, शिवम, सुंदरम जैसी फ़िल्में बनाई, इनमे से कई लीक से हटकर थी और समाज को एक संदेश देती थी.

वैसे तो राजकपूर की फिल्मों के नाम कई रिकॉर्ड और अवार्ड दर्ज है. पर इस शोमैन ने अपना आखरी अवार्ड जब लिया तो वो समाहरोह भी एक ग्रेट शो बन गया. नई दिल्ली के एक सभागार में समारोह था और महामहिम राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन उसके मुख्य अतिथि थे. द ग्रेट शोमैन राजकपूर के नाम की घोषणा हुई. दादा साहब फालके अवार्ड के लिए. उसी वक्त राजकपूर को अस्थमा जोरदार अटैक हुआ. और वो अपने कुर्सी से उठ भी नहीं पाए. राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने सारे प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए एक नई पहल की और वें स्वंय मंच से नीचे उतर आए और इस शोमैन को दादा साहब फालके अवार्ड से नवाजा.

चेम्बूर स्थित आर. के. स्टूडियो अपनी होली के लिए भी जाना जाता है. उस जमाने में आर. के. स्टूडियो के होली समाहरोह में भाग लेने का मिमंत्रण पाना बड़े  सम्मान की बात थी. आर. के. स्टूडियो सिर्फ एक नाम नहीं है. यह फ़िल्मी दुनिया की 70 साल पुरानी वह अतीत की दास्ताँ है जो अपने दामन में न जाने कितनी प्रेम कहानियां, कितनी रूश्वाईयाँ, कितनी यादें अपने में समेटे है. दुःख इस बात का है कि अब यह नाम अपना वजूद खोने वाला है. और सिर्फ बातों और यादों में इसका जिक्र भर होगा.

मनमोहन रामावत

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