
एक आवाज़ की बौछार – जगजीत सिंह

करीब चौबीस पच्चीस साल का एक लड़का,सिर पर सरदारों वाली पगड़ी बांधे,जब मुंबई आया तो सोचा था कि संगीत की दुनिया में एक नया मुकाम हासिल करूंगा..उसे मालूम था कि उस अजनबी शहर में उसके पास ना रहने के लिए कोई घर है और नाही खाने की कोई मुकम्मल व्यव्स्था..लेकिन उसे अपने पर भरोसा था,अपने हुनर पर भरोसा था..शुरूआत में अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए उसने शादियों में गाना शुरू किया..कड़ी मशक्कत के बाद 1976 में वो लड़का गजलों का अपना पहला एलबम निकाल पाया.. उस एलबम का नाम था द अनफ़ार्गेटेबल्स..एक नये लड़के को इतनी बेहतरीन गज़ले गाते सुनकर लोगो ने उसे सिर आंखों पर बिठा लिया.. उस लड़के का नाम था जगजीत सिंह..इसके बाद जगजीत सिंह ने फ़िर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा..ये वो जमाना था जब गजल गायकी में कुछ बड़े नामों का- एक तरह से-एकाधिकार था..और गज़ल सिर्फ़ एक खास तबके की ही पसंद थी..लेकिन जगजीत ने जब गजलों को सुलभ ग्राह्य तरीके से पेश करना शुरू किया तो ये आम लोगों की भी पसंद बनती चली गई..लोगो ने ये पहले बार जाना कि 'आंख को जाम समझ बैठा था अंजाने मे' , और 'मर के भी चैन ना पाया तो किधर जाएंगे' जैसी बेहतरीन शायरी भी सरल तरीके से गायी जा सकती है... क्योंकि ये वो दौर था जब गजल का मतलब ठेठ शास्त्रीय संगीत होता था.. जगजीत के इस प्रयोग की वजह से उस समय के रसूखदार संतिग्यों ने जगजीत पर टेड़ी निगाह डालनी भी शुरू कर दी...लेकिन जगजीत ने अपने विरोधियों पर कभी ध्यान नहीं दिया..
इसके बाद जगजीत के एक बाद एक सभी एलबम हिट होने लगे..रेयर जेम्स, एक्स्टैसी, साउंड अफ़ेयर, ए माईल स्टोन... उनके हर एलबम मे उनकी पत्नी चित्रा ने उनका खूब साथ दिया. फ़िर बारी आई मिर्ज़ा गालिब की .. गुलजार द्वारा निर्देशित इस टीवी सीरियल के करीब करीब सभी गजलें जगजीत और चित्रा ने ही गाई..एक तो मिर्जा साहब की बेहतरीन शायरी, और उपर से जगजीत की रूहानी आवाज़, असर तो होना ही थी..सीरियल और गजलें दोनो सुपर डुपर हिट हुई.. इसके साथ ही शुरू हुआ जगजीत और गुलजार की दोस्ती का एक अटूट सिलसिला,तो आखिर तक बना रहा..
लेकिन इसी बीच एक हादसे ने जगजीत और चित्रा को झंकझोर कर रख दिया..ये हादसा था उसने बेटे की मौत का..जुलाई 1990 मे जगजीत और चित्रा के इकलौते बेटे विवेक सिंह की एक सड़क हादसे में दर्दनाक मौत हो गई..इस सदमें ने जगजीत और चित्रा दोनो को पागल कर दिया..जगजीत ने तो खुद को संभाल लिया लेकिन चित्रा ने फ़िर कभी गजलें ना गाने की कसम खाली.. उसी साल,जगजीत और चित्रा ने अपने बेटे की याद में एक एलबम निकाला जिसका नाम था सम-वन,सम-व्हेयर..इसमें चित्रा की भी आवाज़ थी,ये वो गजलें थी जिनकी रिकार्डिंग सालों पहले हुई थी लेकिन जो रिलीज नहीं हो पाई थी...इस एलबम की गजलें सुनकर जगजीत के दर्द का अन्दाजा लगाया जा सकता है ...
जगजीत की गायकी का क्षेत्र वृहद था..गजले रोमांटिक हो, (मसलन अपने होंठों पर सजाना चाहता हूं) या फ़िर दर्द में डूबी (अब खुशी है ना कोई गम रूलाने वाला), सामाजिक परिपेक्ष्य की गजल हो (आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंजर क्यों है,जख्म हर सिर पे हरेक हाथ में पत्थर क्यों है), या फ़िर अटल बिहारी बाजपेयी की कविताएं..सभी के साथ जगजीत की मुलायम आवाज़ ने पूरा इंसाफ़ किया है..जगजीत की म्यूजिक कंपोजिशन भी बेजोड़ रही है..जराय याद कीजिए,क्राई फ़ार क्राई एलबम के सिया राय की आवाज़ मे गाई गई वो लोरी -'मां सुनाओं मुझे वो कहानी,जिसमें राजा ना हो ना हो रानी',या फ़िर उसी एलबम की वो स्कूली प्रार्थना - 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी..' इसमें जगजीत की आवाज़ नही, उनका संगीत है.., और इस संगीत ने जगजीत की मौजूद का बखूबी एहसास कराया है..
जगजीत की एक और खासियत थी.. वाद्यो के साथ उनका प्रयोग.. गजलों के लिए वो कभी भी पारंपरिक वाद्यो जैसे सितार, सारंगी और तबला पर निर्भर नही रहे, पहली बार उन्होने गजल जैसी क्लासिकल म्यूजिक मे वायलिन, इलेक्ट्रिक गिटार, सेक्सोफ़ोन और कांगो जैसे विदेशी वाद्यो का इस्तेमाल किया, जो कि हिट रही
गजलो का ये मसीहा अब हमारे बीच नही है..करीब दो हफ़्तो तक जिन्दगी और मौत से जूझने के बाद 10 अक्टूबर 2011 को उनकी मौत हो गई.. लेकिन उनकी रूहानी आवाज़ हमेशा हमारे साथ मौजूद रहेगी..