
जानिये क्या है बुद्ध पूर्णिमा का महत्व, 'चार आर्य सत्य' से दुःख का निवारण करने का दिया था संदेश

नई दिल्ली: आज बुद्ध पूर्णिमा है। बुद्ध पूर्णिमा को मानाने के पीछे का कारण यह है कि भगवान गौतम बुद्ध का जन्म वैशाख मास की पूर्णिमा को हुआ था, इस महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। आइये आपको बताते है राजकुमार सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बनने की कहानी क्या है।
नेपाल के कपिलवस्तु में हुआ था जन्म
सिद्धार्थ का जन्म ईसा से 563 साल पहले लुम्बिनी जंगल में हुआ था। लुम्बिनी नेपाल के कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 13 KM दूर दक्षिणी नेपाल में है। सिद्धार्थ कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी और राजा शुद्धोदन के बेटे थे। बताया जाता है कि महारानी महामाया देवी एक बार अपने मायका देवदह जा रही थीं। इसी दौरान उन्होंने जंगल में सिद्धार्थ को जन्म दिया।
यशोधरा से हुई थी शादी
सिद्धार्थ बचपन से ही दूसरों का दुख नहीं देख पाते थे। कहा जाता है कि घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुंह से झाग निकलने लगता तो सिद्धार्थ उन्हें थका जान कर वहीं रोक देते और जीती हुई बाजी हार जाते थे। खेल में भी सिद्धार्थ को खुद हार जाना पसंद था, क्योंकि किसी को हराना और किसी का दुखी होना उनसे नहीं देखा जाता था। शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का विवाह 16 वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की बेटी यशोधरा के साथ हुआ।
ऐसे हुई थी ज्ञान की प्राप्ति
बताया जाता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ एक पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान लगा रहे थे। इसी दौरान सुजाता नाम की एक महिला वहां पहुंची जिसे बेटा हुआ था। महिला ने बेटे के लिए एक वटवृक्ष की मनौती मानी थी। बेटा होने के बाद वो सोने की थाली में गाय के दूध की खीर बनाकर पेड़ के नीचे पहुंची। यहां उन्होंने सिद्धार्थ को देखा तो सोचा कि वृक्ष देवता साक्षात वहां मनुष्य के रूप में बैठे हैं। सुजाता ने उन्हें खीर दिया और कहा कि जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो।
निर्वाण प्राप्ति
उनके समकालीन शक्तिशाली मगध साम्राज्य के शासक बिम्बीसार तथा अजातशत्रु ने बुद्ध के संघ का अनुसरण किया। बाद में सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को श्रीलंका, जापान, तिब्बत तथा चीन तक फैलाया। ज्ञान प्राप्ति पश्चात भगवान बुद्ध ने राजगीर, वैशाली, लोरिया तथा सारनाथ में अपना जीवन बिताया। उन्होंने सारनाथ में अंतिम उपदेश देकर अपना शरीर त्याग दिया।
बौद्ध गया में की थी तपस्या
इस जगह को बौद्ध धर्म के अनुयायी सबसे पवित्र जगहों में से एक मानते हैं। यहीं पर एक वटवृक्ष के नीचे ध्यान लगाए बैठे रहने पर गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह स्थान बिहार के ‘गया’ में स्थित है। यहां अब महाबोधि मंदिर है और एक महाबोधि वृक्ष भी है।
कुशीनगर में हैं 8 स्तूप
कुशीनगर: इसी जगह पर महात्मा बुद्ध का महानिर्वाण (मोक्ष) हुआ था। यह उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में पड़ती है। यहां बुद्ध के 8 स्तूपों में से एक स्तूप बना, जहां बुद्ध की अस्थियां रखी गईं।
श्रावस्ती का बुद्ध स्तूप
श्रावस्ती का बुद्ध स्तूप के लिए कहा जाता है कि, बुद्ध इस स्थान पर 27वर्ष तक रहे थे। यहां उन्होंने नास्तिकों को सही दिशा दिखाने के लिए कई चमत्कार किए थे। अपने कई रूपों के दर्शन भी करवाए।
तीन तिथियों का धार्मिक महत्व
स्कन्द पुराण के अनुसार वैशाख पूर्णिमा का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि वैशाख मास को ब्रह्मा जी ने सब मासों में उत्तम सिद्ध किया है। अतः यह मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है। वैशाख के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां 'पुष्करणी ' कही गयी हैं। इनमें स्नान,दान-पुण्य करने से पूरे माह स्नान का फल मिल जाता है। पूर्व काल में वैशाख मास की एकादशी तिथि को अमृत प्रकट हुआ, द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की,त्रयोदशी को श्री हरी ने देवताओं को सुधापान कराया तथा चतुर्दशी को देवविरोधी दैत्यों का संहार किया और वैशाख की पूर्णिमा के दिन ही समस्त देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया।
भगवान बुद्ध को भी समर्पित है यह पूर्णिमा
वैशाख पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन की तीन अहम बातें -बुद्ध का जन्म,बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति एवं बुद्ध का निर्वाण के कारण भी विशेष तिथि मानी जाती है। गौतम बुद्ध ने चार सूत्र दिए उन्हें 'चार आर्य सत्य ' के नाम से जाना जाता है। पहला दुःख है दूसरा दुःख का कारण तीसरा दुःख का निदान और चौथा मार्ग वह है जिससे दुःख का निवारण होता है।