
#VeerAhirAlha की जयंती आज, पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में किया था परास्त

नई दिल्ली: देश में आज महान योद्धा वीर अहीर आल्हा की जयंती मनाई जा रही है। उनका जन्म 12वीं सदी में 25 मई को बुदेलखंड के महोबा के दशरथ पुरवा गांव में हुआ था। आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हराया था, लेकिन अपने गुरु गोरखनाथ के आदेश पर उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया था।
आल्हा और ऊदल पराक्रमी योद्धा
भारत की धरती पर अनेक योद्धाओं, वीरों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपने साहस की गाथाओं से देश को गौरवान्ति कर दिया। ऐसे ही महान योद्धा थे बुंदेलखंड की मिट्टी में पैदा हुए दो भाई आल्हा और ऊदल। जिन्होंने अपनी वीरता और साहस से भारत के इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी। इतिहासकारों के मुताबिक आल्हा और ऊदल राजा परमल के सेनापति दसराज चंदेलवंशी और दिवला के पुत्र थें। ये दोनों भाई बेहद पराक्रमी और शक्तिशाली थे। आल्हा और ऊदल बचपन से ही शास्त्रों के ज्ञान और युद्ध कौशल में निपुण हो गए थे। दोनों भाईयों को भीम और युधिष्ठिर का अवतार माना जाता था।
मां दुर्गा के भक्त थे आल्हा-ऊदल
आल्हा और ऊदल मां दुर्गा के परमभक्त थे। इतिहास के मुताबिक उन्हें मां की तरफ से पराक्रम और अमरता का वर मिला था। कालिंजर के राजा परमार के दरबार में जगनिक नाम के एक कवि ने आल्हा खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की गाथा वर्णित है। इस ग्रंथ में दों वीरों की 52 लड़ाइयों का रोमांचकारी वर्णन है।
पृथ्वीराज चौहान से लड़ा आखिरी युद्ध
आल्हा और ऊदल के बीच गहरा प्रेम था। दोनों भाई एक-दूसरे के ऊपर अपनी जान न्यौछावर करने के लिए भी तैयार थे। अगर एक भाई पर मुसीबत आती तो दूसरा उसके सामने चट्टान बनकर खड़ा हो जाता था। आल्हा और ऊदल ने अपना अंतिम युद्ध दिल्ली के शासक रहे पृथ्वीराज चौहान के लड़ा था। पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल शासनपर 11वीं सदी में आक्रमण किया था। बैरागढ़ में हुए उस युद्ध में आल्हा के भाई ऊदल को वीरगति प्राप्त हुई थी।
भाई ऊदल की मौत का लिया बदला
बैरागढ़ की जंग में भाई ऊदल की मौत की खबर सुनकर आल्हा अत्यधिक दुखी और क्रोधित हो उठे। वो युद्ध स्थल पर पृथ्वीराज चौहान की सेना पर कहर बनकर टूट पड़े। आल्हा और पृथ्वीराज के बीच घंटों तक जमकर युद्ध हुआ जिसमें आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर दिया था। बाद में अपने गुरु गोरखनाथ के आदेश पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया था।