
Movie Review द ताशकंद फाइल्स: राजनीति, पत्रकारिता, इन्वेस्टीगेशन और ड्रामा का मिक्सचर
देश के सबसे विवादास्पद विषय लाल बहादुर शास्त्रर की डेथ मिस्ट्री पर आधारित द ताशकंद फाइल् आज रिलीज़ हो चुकी है. फिल्म के डायरेक्टर ने भरपूर कोशिश की है कि फिल्म देखने के बाद लोग इतिहास के पन्नों को जरुर पलट कर देखें.
फिल्म देखने पर कभी आपको आगे ले जाएगी तो कभी इतनी धीमी गति से चलती है कि आम आदमी के लिए इसे समझना मुश्किल हो सकता है.
फिल्म एक महत्त्वाकांक्षी पत्रकार रागिनी फुले के इर्द गिर्द घूमती है, जो एक खास न्यूज़ स्कूप के इंतज़ार में है. उसके हाथ कहीं से ताशकंद फाल्स लग जाती हैं, जिसमें लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मृत्यु का सच लिखा होता है.
वह उन तथ्यों को पढ़कर अखबारों में छपवा देती है. जिसके चलते सरकार को लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु का केस दोबारा खोलना पड़ता है. धीरे धीरे कहानी शास्त्री जी की मौत के बाद हुए भारत के संविधान और सरकार में बदलाव के रास्ते पर चलकर सच ढूंढने की कोशिश करती है.
फिल्म में रागिनी फुले का किरदार श्वेता बसु प्रसाद ने अदा किया है. शास्त्री जी की मृत्यु से परदा हटाने के लिए नियुक्त की गई सरकारी समिति में मिथुन चक्रवर्ती, नसीरुद्दीन शाह, पल्लवी जोशी, पंकज त्रिपाठी, मंदिरा बेदी, राजेश शर्मा हैं.
फिल्म में एक्टिंग की बात करें तो मंदिरा बेदी ने काफी एक्टिंग की है. मिथुन चक्रवर्ती और नसीरुद्दीन शाह की एक्टिंग फिल्म में देखने लायक है. पंकज त्रिपाठी की बात करें तो वो तो सबसे अलग ही हैं.
फिल्म का डायरेक्शन सराहनीय है. आधे से ज्यादा समय एक छोटे से सरकारी दफ्तर में शूट हुई यह फिल्म आपको अपने नाखून चबाने के लिए मजबूर करदेगी. लेकिन निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने जो दर्शाने की कोशिश वह शायद सभी को काफी हद तक पता है.
फिल्म में एडिटिंग और फिल्म की कहानी की बात करें तो थोड़ी जल्दबाजी दिखाई देती है. देश के अहम सामाजिक मुद्दों पर जो उंगली विवेक अग्नीहोत्री ने उठाने की कोशिश की है वह ढीले धागे में बंधी है.